
Recepción: 15 Abril 2022
Aprobación: 20 Mayo 2022
DOI: https://doi.org/10.53724/ambition/v7n1.05
सारांश: सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्योगों के विकास तथा समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु केन्द्र सरकार के सहयोग से उत्तर प्रदेश में एक जिला एक उत्पाद” योजना का प्रारम्भ किया गया। शोध पत्र में इस योजना को केन्द्र सरकार की एक अन्य योजना 'कौशल विकास' के साथ सम्बद्ध करके विकास को गति देने तथा ओ.डी.ओ.पी. योजना की सफलता को उच्चतम् स्तर तक ले जाने की सम्भावना की खोज की गयी है।
Keywords: ओडी.ओ.पी., कौशल. भारत, लोकल-दु-वोकल, आत्मनिर्भर, जनाकिकी लाभांश, विनिर्माण हब
प्रस्तावना
एक जिला एक उत्पाद” योजना आत्मनिर्भर भारत' के सन्दर्भ में प्रत्येक जिले के विशिष्ट उत्पादों को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने तथा क्षेत्र के लोगों के विशिष्ट कौशल का प्रयोग करके रोजगार सृजन के साथ ही सामाजिक-आर्थिक प्रगति को बढ़ावा दे रही है। वस्तुतः: भारत अत्यन्त विविधताओं का देश है। इन सामाजिक-भौगोलिक विविधताओं का प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों की आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ता है। लोग परम्परागत रूप से अपने क्षेत्र के विशिष्ट संसाधनों के साथ ही उनके अधिकतम उपयोग हेतु विशिष्ट कौशल को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
इसी प्रयास को गति देने तथा परम्परागत कौशल को आधुनिक तकनीकी प्रबन्धन तथा उपभोक्ता व्यवस्था से जोड़ने हेतु भारत सरकार के 'वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय” के साथ “विदेश व्यापार महानिदेशालय” तथा औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग” के सहयोग से "एक जिला एक उत्पाद” योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने 24 जनवरी 2018 को एक सराहनीह कार्य किया जिसमें एक जिला एक उत्पाद योजना को प्रारम्भ किया। यह योजना माननीय प्रधानमंत्री के विचार "लोकल टू वोकल' का प्रतिबिम्ब है। इस योजना के साथ भारत सरकार के कौशल विकास मंत्रालय द्वारा संचालित कौशल-भारत योजना का प्रयोग देश की बृहत कार्यशील जनसंख्या को आर्थिक संसाधन के रूप में प्रयोग करने हेतु किया जा रहा है जिससे भारत की जनता को अत्याधिक फायदे होगें। वस्तुत: कौशल एक प्रकार की प्रवीणता है जो प्रशिक्षण और अनुभव के द्वारा विकसित की जा सकती है। इसी प्रवीणता का प्रयोग क्षेत्र के विशिष्ट उत्पादों में मात्रात्मक व गुणात्मक वृद्धि करने में किया जा सकता है।
ओ.डी.ओ.पी. योजना भारत सरकार तथा प्रधानमंत्री के मेक इन इण्डिया" तथा 'लोकल टु वोकल' विचार का ही प्रतिबिम्ब है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक जिले के विशिष्ट उत्पाद को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रमुखता देना तथा उपभोक्ताओं को उसकी विशिष्टता तथा गुणवत्ता से परिचित कराना शामिल है। इसके आधार पर न सिर्फ उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की प्राप्ति होगी साथ ही उस क्षेत्र के निर्माताओं, विनिर्माताओं, उस प्रबन्धकीय व्यवस्था से जुड़े कुशल या अकुशल श्रमिकों आदि की आर्थिक प्रगति सुनिश्चित होती है।
वस्तुत: भारत न सिर्फ भौगोलिक व सामाजिक-सास्कृतिक रूप से अपितु आर्थिक स्रोतों व संसाधनों के रूप से भी अत्यन्त विविधतामूलक देश है। देश की इसी विविधता को संरक्षित करने तथा विशिष्ट क्षेत्र की आर्थिक उन्नति के साथ देश को एक विनिर्माण हब के रूप में विस्थापित करने के क्रम में ओ.डी. ओ.पी. योजना एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रस्तुत शोध पत्र में इस बात की खोज करने का प्रयास किया गया है कि इस योजना के साथ भारत सरकार की एक अन्य योजना कौशल भारत के अनुप्रयोग के द्वारा कार्यशील जनसंख्या की दक्षता तथा उत्पादकता में वृद्धि करने के साथ ही उत्पाद की गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सक। चूंकि भूमण्डलीकृत विश्व में सभी अर्थव्यवस्थायें एक दूसरे से जुडी हुई है अतः वैश्विक स्तर पर प्रत्येक उत्पाद का मूल्य व गुणवत्ता उसकी बाजार स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है।
ओ.डी.ओ.पी. के अन्तर्गत उन विशिष्ट शिल्प कलाओं, परम्परागत कौशल तथा उत्पादों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जो देश में किसी अन्य स्थान पर उपलब्ध नहीं है। उदाहरण स्वरूप कालानमक चावल, चिकनकारी, पीतल की मूर्तियां आदि। इसके आधार पर केन्द्र सरकार द्वारा प्रयोजित कौशल भारत योजना का सहयोगात्मक प्रयोग करके इस विशिष्ट कौशल को आधुनिक संचार तकनीक व प्रबन्धन का प्रयोग करते हुये उस क्षेत्र का समग्र विकास किया जा सकता है।
प्रस्तुत शोध पत्र में उत्तर प्रदेश के विभिन्न सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों को“कौशल-भारत अभियान' के अन्तर्गत प्रशिक्षण व आधुनिक तकनीकी ज्ञान का प्रयोग करते हुए बृहत व गुणवत्त्तापूर्ण उत्पादों के निर्माण के साथ रोजगार सृजन के अवसरों की सम्भावना की खोज की जायेगी। इसके साथ उस क्षेत्र की सामाजिक-आर्थििक प्रगति की सम्भावनाओं को भी रेखांकित किया जायेगा। वस्तुत: कौशल-भारत अभियान का प्रारम्भ 15 जुलाई 2015 को किया गया। इसके आधार पर भारत की वृहत कार्यशील जनसंख्या को रोजगार में संलग्न
सन्दर्भ साहित्य और शोध कार्य-
और खान (2019) ने कौशल-भारत के सन्दर्भ में निम्नलिखित बिन्दुओं को रेखांकित किया है:
कौषल भारत अभियान के अन्तर्गत देश में प्रतिवर्ष 15 मिलियन कुशल श्रमिक तैयार किये जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अन्तर्गत 2022 तक 300 मिलियन कुशल श्रमिक तैयार किये जाने हैं। कौशल विकास के द्वारा आर्थिक समावेशन के साथ ही सामाजिक विभेद यथा-जेण्डर, जाति व धर्म के आधार पर असमानता को कम किया जा सकता है। कौशल विकास पहल के द्वारा कुशल श्रमिकों के प्रवाह को सुनिश्चत करने के साथ ही उद्योगों की बदलती माँग के अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन करते हुए कौशल व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का विकास किया जा सकता है।
सिंह व संजीव (2016) में 'मेक इन इण्डिया” के सन्दर्भ में पुन--कौशल प्रशिक्षण का अध्ययन करने के साथ संगठन के कार्यक्रमों के प्रति कर्मचारियों की अभिवृत्ति का अध्ययन किया तथा निष्कर्ष निकाला कि इन कार्यक्रमों के प्रति कर्मचारियों की अभिवृत्ति उनकी आवश्यकता, गुणात्मकता में वृद्धि या अद्यतन ज्ञान आदि सीमाओं से आच्छादित रहती है।
भारत सरकार के कौशल भारत अभियान पर अभिषेक व आदित्य 2015) ने एक शोध के द्वारा उसकी चुनौतियों और ड्रापआउट का अध्ययन किया। कौशल विकास में सबसे बड़ी समस्या उचित आर्थिक संसाधनों की है, विशेषकर प्रशिक्षण हेतु पर्याप्त धन की उपलब्धता न होना। इसके अतिरिक्त योजना में स्पष्ट रूप से एक लैंगिग पूर्वाग्रह देखा जा सकता है क्योंकि पराम्परागत रूप से इस तरह के कार्यक्रमों का जुड़ाव पुरूषों से ही रहा है।
इसी प्रकार कपूर 2014) ने भारत में कौशल विकास नामक अपने अध्ययन में इस योजना के स्वरूप तथा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का अध्ययन करने का प्रयास किया। अध्ययन मे यह निष्कर्ष निकाला कि कौषल विकास के अनेक कार्यक्रमों के बाद भी ग्रामीण भारत कौशल विकास में अत्यन्त पिछड़ा हुआ है। अनेक प्रकार के कम्प्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम, शिल्पकारी में दक्षता प्राप्त करने हेतु चलाये जा रहे कार्यक्रम आदि भले ही तत्काल लाभ न देते हो परन्तु व्यक्तिगत रूप से जीवन में व्यक्ति के लिए लाभदायक होते हैं।
प्रसाद और पुरोहित (2017) ने 'मेक इन इण्डिया" के आधार पर कौशल विकास रोजगार और उद्यमशीलता का अध्ययन किया तथा निष्कर्ष निकाला कि सरकार के योजनागत उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु औपचारिक शिक्षा के साथ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को वैश्विक स्तर के मानकों को पूरा करना होगा। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बाद भी यहाँ न सिर्फ तकनीकी विशेषज्ञों की आवश्यकता है अपितु सूचना संचार विशेषज्ञों, समस्या समाधान करने वाले कुशल श्रमिकों के साथ ही बेहतर अन्तवैयक्तिक क्षमता रखने वाले लोगों की आवश्यकता है।
वस्तुत: ओ.डी.ओ.पी. योजना का प्रारूप 1979 में जापान में प्रारम्भ हुई इसी प्रकार की एक योजना से लिया गया है। जिसके अन्तर्गत परम्परागत लघु व कुटीर उद्योगों को संरक्षित करते हुए क्षमता विकास तथा रोजगार ways अर्थव्यवस्था के निर्माण को गति प्रदान की गयी। इस सम्बन्ध में उमा शंकर यादव, रवीन्द्र त्रिपाठी तथा मनु आशीष त्रिपाठी 0022) ने उत्तर प्रदेश को ओ. डी.ओ.पी. के सम्बन्ध में विश्लेषित करने का प्रयास किया तथा पाया कि एन.सी. ए.आर.ई. की रिपोर्ट के अनुसार देश के 29 प्रतिशत शिल्पकार उत्तर प्रदेश से सम्बन्धित हैं। स्पष्ट है कि हस्तकला के विकास में उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
खान, डब्ल्यू. ए. और आमिर जेड. (2013) ने अपने शोध में स्पष्ट किया कि हस्तकला तथा हस्तशिल्प को सरकारी सहायकता नहीं मिल रही है सरकारी सहायता प्राप्त हस्तशिल्प अपने उत्पादों की उल्पादकता, गुणवत्ता, मूल्य और विज्ञापन को कैसे बढ़ा सकते हैं।
ओ.डी.ओ.पी. योजना के द्वारा पराम्परागत व्यवसाय में लगे उद्यमी जिनमें अधिसंख्यक एस.सी.. एस.टी. तथा पिछड़ा वर्ग के लोग होते है, को अपने आर्थिक स्तर को सुधारनें का अवसर मिलेगा। इससे इनके आर्थिक समावेशन का मार्ग प्रशस्त होगा। इसके अलावा सामुदायिक उद्यमशीलता में वे सभावनाएं छिपी है कि वह प्रवासियों की समस्याओं विशेषकर जीविका की समस्या का समाधान कर सके। हाल की केविड-19 महामारी में प्रवासी श्रमिकों के सामने इस तरह की समस्यायें उत्पन्न हुई जब वे अपने काम को छोडकर घर आ गये। कौशल विकास के द्वारा उन्हें अल्प समय में ही उनके विशिष्ट क्षेत्रों के विशिष्ट उत्पादों की उत्पादन प्रक्रिया में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के विशेष सन्दर्भ में मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना को ओ.डी.ओ. पी. से जोड़कर अपना व्यवसाय प्रारम्भ करने हेतु 25 लाख रूपये तक का ऋण दिया जाने का प्रावधान किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 में एक जिला एक उत्पाद योजना के निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये है जिसके आधार पर अन्तराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिये प्रत्येक उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकेगा।
स्पष्ट है कि ओ.पी.ओ.पी. योजना में कौशल विकास का प्रयोग उत्पाद की गुणवत्ता, उत्पादकता आदि में सकारात्मक बदलाव किया जा सकता है।
निष्कर्ष
प्रस्तुत शोध में यह निष्कर्ष निगमित हुआ कि विभिन्न सरकारी योजनाओं में आपसी संयोजन की कमी देखी जा सकती है। ओ.डी.ओ.पी. और कौशल भारत अभियान के सम्बन्ध में भी यही विलम्बन देखा जा सकता है। शोध में लखनऊ और मुरादाबाद जिलों के एक जिला एक उत्पाद के रूप में चिन्हित उत्पादों को शामिल किया गया।
लखनऊ जिले के सन्दर्भ में चिकनकारी को 'एक जिला एक उत्पाद' के रूप में चिन्हित किया गया है जबकि यहाँ संचालित होने वाले कौशल प्रशिक्षण केन्द्रों के पाठ्यक्रम में चिकनकारी के परम्परागत कौशल को शामिल नही किया गया है वहीं दूसरी तरफ मुरादाबाद के पीतल उद्योग को ओ.डी.ओ.पी. के रूप में चिन्हित तो किया गया है किन्तु वहाँ के प्रशिक्षण केन्द्रों में इससे सम्बन्धित पाठ्यक्रम का अभाव दिखाई देता है। वस्तुतः: कौशल भारत अभियान के प्रशिक्षण केन्द्र अल्पकालिक आई.टी.आई. प्रशिक्षण कार्यक्रमों की भांति ही संचालित हो रहे हैं। इस विलम्बन के कारण ही ओ.डी.ओ.पी. कार्यक्रम अपनी पूर्ण सफलता को प्राप्त नही कर पा रहा है।
सुझाव
वैश्विक स्तर पर व्याप्त प्रतिस्पर्धा और भारत के जनांकिकी लाभांश का उचित उपयोग तभी सम्भव होगा जब विभिन्न सरकारी योजनाओं और सामाजिक, आर्थिक विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुये न सिर्फ सरकारी कार्यक्रमों, योजनाओं का निर्माण किया जायेगा बल्कि कार्यपालिका और प्रशासन की यह जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए कि वो विभिन्न प्रकार की योजनाओं को लागू करने में लोकतांत्रिक प्रक्रियों का पालन करें और विशिष्टता तथा अनुभव को उचित महत्व दें। इस प्रकार एक जिला एक उत्पाद” योजना की सफलता उस उत्पाद की उत्पादन प्रक्रिया, विषणन, गुणवत्ता आदि में कौशल और प्रशिक्षण के प्रयोग पर निर्भर करती है।
संदर्भ
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